
माँ की ममता Hindi Kahani | Moral Story in Hindi
एक बेहद गरीब बुढ़िया जिसका संसार में कोई नहीं था। वह जैसे-तैसे अपना जीवन यापन करती थी। एक दिन अचानक एक लड़का उसके दवाजे आ खड़ा होता है, बेटा तुम कौन हो और इस गरीब बुढ़िया के घर क्यों आए हो? बूढ़ी मां हम काम की तलाश में यहां तक आए हैं। क्या आज रात हम यहां रुक सकते हैं? सुबह होते ही हम किसी सेठ के यहां काम तलाश लेंगे। हां, बूढ़ी मां, हमें बहुत जोरों की भूख भी लगी है। क्या हमें खाने को भी कुछ मिल सकता है?
हां-हां बेटा, क्यों न ही तुम दोनों यहां जरूर रुक सकते हो और मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेकर आती हूं। आओ, अंदर आ जाओ। वे दोनों घर में जाते है और दोनों दोस्त भरपेट भोजन करके वहीं सो जाते हैं। अगर ये दोनों हमेशा मेरे पास रहे तो मुझे बुढ़ापे का सहारा मिल जाएगा। अब मेरा कोई नहीं है। इस दुनिया में इसकी कमी भी पूरी हो जाएगी पर ये दोनों रुकेंगी या नहीं रुकेंगे, यह पूछना पड़ेगा।
सुबह होते ही दोनों वहां से जाने लगते हैं। तभी बेटा रुको, मेरी बात सुनो। क्या तुम यहां मेरे बेटे बनकर नहीं रह सकते? मेरी कोई औलाद नहीं है। अच्छा तो हममें आपकी सेवा करने का क्या मिलेगा? अगर हम तुम्हारे बेटे बन जाएं तो हमारा क्या भला होगा? बेटा ज्यादा तो कुछ नहीं है मेरे पास तुम्हें देने को।
Moral Story in Hindi माँ की ममता
बुढ़िया अंदर जाती है और सिर के नीचे रखा ₹1 का सिक्का लाकर उन्हें दिखाती है। और हां, मेरे पास ₹1 है। क्या तुम इसके लिए मेरी सेवा कर सकते हो?
₹1 का सिक्का। इसके लिए हम तुम्हारी सेवा कर रहे हैं। इससे तो अच्छा होगा हम किसी सेठ के यहां नौकरी कर लेंगे, जिससे हमें पूरे ₹4,000 पगार मिलेगी। मित्र, ऐसा न कहो बेशक हमें बूढ़ी मां से कुछ न मिले, पर हमारी एक मां तो होगी, जिसके साथ में हम रह सकते हैं। हम भी तो अनाथ हैं। रामु कुछ देर सोचने के बाद हां मित्र, तुमने सही कहा, हम यहीं रहेंगे। इस बूढ़ी मां के बेटे बनकर वह रोज सुबह जंगल जाते और लकड़ियां बेचकर खुद का और बुढ़िया का खयाल रखते।
एक दिन बुढ़िया सोचने लगी मेरे बेटों के लिए मेरे पास यह ₹1 है। मुझे कुछ करना पड़ेगा, जिससे मैं उन्हें उनकी सेवा का फल दे सकूं तभी बुढ़िया को एक सेठ की दुकान दिखती है। वह सेठ के पास गई और बोली बेटा, आप कितना धन कमा लेते हैं?
सेठ ने बुढ़िया की तरफ देखा। आखिर यह बुढ़िया मुझसे ऐसा क्यों पूछ रही है? बस माँ जी यूं समझिए एक साल में दोगुना हो जाता है। पर आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं? मेरे पास यह ₹1 है। क्या तुम इसे अपने काम में लगा सकते हो? मैं इसका दोगुना हर साल के हिसाब से ले जाऊंगी।
सेठ बिना कुछ सोचे समझे उस बुढ़िया पर तरस खाकर। हाँ-हाँ माँ जी क्यों नहीं लाइए ₹1 ही तो है। आप जब चाहें इसका दो गुना हर साल के हिसाब से मुझसे ले जा सकती हैं। बुढ़िया खुश होते हुए घर वापस आ जाती है। दिन बीते, महीने, बीते, साल बीते अब लगभग पूरे 25 साल हो चले थे।
Moral Story in Hindi Maa Ki Mamata
बेटा, तुम इतने समय से मुझे अपनी मां समझकर मेरी सेवा किए जा रहे हो। अब वो समय आ गया है कि मुझे वो ₹1 तुम्हें दे देना चाहिए। तुम दोनों बड़े-बड़े बोरे ले लो और चलो मेरे साथ। लाला, क्या तुम्हें याद है? आज से लगभग 25 साल पहले मैंने तुम्हें ₹1 का सिक्का दिया था। हां-हां मां जी, मुझे अच्छे से याद है। तो उसका हर साल दो गुना के हिसाब से 25 साल का हिसाब बनाकर मेरे बेटों को दे दो।
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हां-हां क्यों नहीं। आप भी लो, सेठ ने हिसाब लगाना शुरू किया जब हिसाब बनकर तैयार हुआ तो सेठ के तो मानो पैरों तले जमीन खिसक गई। न चाहते हुए भी सेठ ने दोनों बेटों को बोरियों में भरकर धन दिया और वे तीनों खुशी-खुशी घर वापस आ गए। दोनों बेटे बूढ़ी मां के तेज दिमाग की प्रशंसा करने लगे। दोस्तो, हर साल दोगुना के हिसाब से 25 साल में उस बूढी मां के ₹1 का कितना पैसा उन लोगों को मिला। हमें कमेंट करके अवश्य बताएं और कहानी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के पार शेयर करना न भूले।