
अनमोल दोस्ती Kahani in Hindi
दो दोस्त रोज की तरह काम की तलाश में जंगल के रास्ते चले जा रहे थे। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि लोग उनकी दोस्ती की मिसाल देते थे। काफी दूर चलने के बाद, मित्र आज का दिन कितना सुहावना है और मुझे हमारे साथ कुछ अच्छा होने का आभास हो रहा है। लगता है आज मुझे ऐसा लग रहा कि हमारे साथ कुछ अच्छा होने वाला है।
हां मित्र तुम्हारी कही हुई बाते शायद सच हो जाए, कुछ दूर चलने के बाद वो देखते हैं कि एक लाचार बुढ़िया एक लकड़ी के गट्ठर को उठाने की कोशिश कर रही है। पर उससे वो गट्ठर उठाया नहीं जा रहा तभी वो दोनों वहां पहुंचते हैं।
बेटा, क्या तुम इसे उठाने में मेरी मदद कर दोगे? मेरी हड्डियों में जान नहीं रही कि मैं ही इसे उठा सकूं। फिर उन दोनों में एक बोलता है, मित्र हमें इस लाचार बूढ़ी अम्मा की मदद करनी चाहिए नहीं मित्र, तुमने ही कहा था कि तुम्हें आज कुछ अच्छा होने का आभास हो रहा है। क्या पता आगे कोई धनी सेठ आ रहा हो, जिसका सामान उठाने से वह हमें बहुत सारा धन दे। इस बूढ़ी मां की मदद करने से कहीं वह निकल गया तो और वैसे भी यह बूढ़ी अम्मा तो खुद भिकारी जैसी लग रही है। इसकी मदद करने से हमें क्या मिलेगा? मैं तो चला अपने रस्ते।
नहीं मित्र, ऐसा न कहो हम इनकी मदद करते ही आगे चलेंगे। मैं तो जा रहा हूं तुम ही करो यहां समय बर्बाद। रमेश अपने रास्ते चला गया और रामू को गट्ठर उठाकर उस बूढ़ी अम्मा की झोपड़ी तक छोड़ देता है, लो जी आपका घर आ गया, अब मै चलता हूँ शुक्रिया बेटा भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे।
रामू वहां से जाने लगता है तभी बेटा रुको जरा। तुमने मेरी इतनी मदद की है पर मेरे पास तो भी देने के लिए कुछ नहीं है। मेरे पास एक कागज का टुकड़ा है। शायद तुम्हारे कुछ काम आ जाए बेटा तुम इसे रख लो, नही अम्मा जी, मुझे कुछ नही चाहिए पर आप प्यार से मुझे कागज भी देगी तो वह भी मेरे लिए बहुमूल्य है। रामू कागज का टुकड़ा लेकर वहां से जाने लगा, कुछ दूर चलने के बाद उसका मित्र रमेश उसे मिलता है। आ गए तुम नेकदिल इंसान मैंने पहले ही कहा था मेरे साथ चलो, देखो एक सेठ की मदद करने से मुझे कितना धन मिला है। तुम्हें क्या मिला? उस बूढ़ी अम्मा की मदद करने से।
Kahani in Hindi Anmol Dosti
रामू वह कागज का टुकड़ा उसे दिखाता है उसे देख रमेश खूब हंसा और मत मानो मेरी बात दिखाओ तो कौन सी रद्दी का कागज है तभी रमेश उसे देखकर चौंक जाता है, क्योंकि वह कोई साधारण कागज नहीं था। अरे मित्र ये तो मुझे किसी खजाने का नक्शा लगता है। हां मित्र, चलो चलकर इसे निकालते हैं। यह नक्शा शायद इस तरफ जाता है। हमें यही चलना चाहिए। दोनों मित्र खजाने की तलाश में चल पड़ते हैं। काफी देर चलने के बाद आखिरकार वह उस पेड़ के पास पहुंच जाते हैं, जिसकी जड़ में खजाना छुपा था। मित्र लगता है यह वही पेड़ है, जिस नक्शे में दिखाई दे रहा है। चलो जल्दी से हम खोदकर इस खजाने को निकाल लेते हैं।
रमेश और रामू खुदाई करके उस खजाने को निकाल लेते हैं। मित्र हमें इस खजाने को दो हिस्सों में कर लेना चाहिए आधा मेरा और आधा तुम्हारा और बोझ खजाने के दो हिस्से कर लेते हैं और घर लौटने लगते हैं, कुछ दूर चलने के बाद।
मित्र मैं बहुत थक गया हूं, हमें कुछ देर आराम करना चाहिए। ठीक है मित्र जैसा तुम कहो और दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं। तभी रमेश अपने मन में सोचता है ,आज तो बड़ा फायदा हुआ बैठ-बिठाए बुढ़िया की मदद की रामू ने और फायदा हुआ रमेश का और जरा देखो तो इस खजाने को मुझे तो बार-बार देखने को मन हो रहा है और जैसे ही रमेश ने खजाना खोला उसके मन में लालच आ गया। क्यों न इस खजाने को मैं सहारा ले लूं फिर तो मेरा और भी फायदा होगा, यह तो अभी सो रहा है। इससे अच्छा मौका मुझे कभी नहीं मिलेगा और रमेश दोस्त को धोखा देते हुए और मौके का फायदा उठाते हुए वहां से जाने लगता है।
अनमोल दोस्ती Desi Kahani
थोड़ी दूर चलने पर ही अरे यह खजाना इतना हलका कैसे लग रहा है? मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैंने कुछ पकड़ा ही नहीं है जरा देखता हूं और जैसे ही रमेश ने खजाना खोला। अरे ये मेरे खजाने कहा गए और ये पत्थर कहां से आ गए? खजाने की जगह रमेश के पास तीन पत्थर थे। रमेश बिना कुछ सोचे समझे वापस रामू के पास आया।
मित्र देखो ना, तुम थके हारे सो रहे थे तो मैंने सोचा क्यों न इस खजाने को आधा तुम्हारे घर आधा अपने घर रख दूँ और यह तो पत्थर बन गए, मित्र मुझे लगता है तुमने उस बूढ़ी मां की मदद नहीं की थी उसी का परिणाम है, कि हमारा खजाना पत्थर हो गया है तभी बूढ़ी अम्मा वहां आ जाती हैं। बेटा, तुम्हारा दोस्त तुमसे झूठ बोल रहा है। खजाना मेरी मदद न करने की वजह से पत्थर नहीं हुआ, बल्कि तुम्हारे मित्र ने तुम्हें धोखा दिया है और सारा खजाना अकेले लेकर भाग रहा था। इस कारण वो खजाना पत्थर हुआ। मित्र, क्या बूढ़ी मां सच कह रही हैं?
हां मित्र, मुझे माफ कर दो। मेरे मन में लालच आ गया था। मैंने अपने साथ साथ तुम्हारा भी खजाना नष्ट कर दिया और अपने सबसे अच्छे मित्र को धोखा देने का प्रयास किया। रमेश को अपनी गलती का अहसास होता है, नहीं मित्र ऐसा न कहो तुम मेरे मित्र हो, तुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ इतना काफी है मेरे लिए चलो अब हम घर चलते हैं, तभी बूढ़ी मां वहां से ग़ायब हो जाती हैं और एक आकाशवाणी होती है, रामू तुम्हारी मित्र के प्रति मित्रता देखकर मैं तुम्हें दोबारा वह धन लौटा रही हूं और वह दोबारा खजाना आ जाता है।
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राजू कहता त्र चलो अब हम फिर से आधा-आधा बांट लेते हैं नहीं मित्र, ऐसी मूर्खता मत करना। मेरा तुम्हारे खजाने पर कोई हक नहीं, क्योंकि मैंने उस बूढ़ी मां का अपमान किया था। मेरी करनी का मुझे फल मिला है अगर उसमें से मैंने आधा लिया तो वह भी गायब हो जाएगा और तुम्हारे पास भी थोड़ा ही बचेगा। मेरे पास तुम्हारे जैसा मित्र है, वही मेरा खजाना है। रामू बोलता है, ठीक है मित्र जैसा तुम कहो और दोनों घर की ओर चले जाते हैं।
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