
जादुई बर्तन की Hindi Kahani
इस जादुई बर्तन के कहानी में रामपुर गांव में राजू नामक एक लकड़हारा रहता था, वह लकड़ियां काटकर घर-घर बेचकर उससे पैसे इकट्ठा कर अपनी और अपनी मां की देखभाल करता था। राजू एक दिन सुबह-सुबह लकड़ियां इकट्ठा करने के लिए निकलता है, वह जंगल से ढेर सारी लकड़ियों को इकट्ठा करता है और इसका गट्ठर बनाकर ले आता है आते-आते रास्ते में वह एक घर के पास रुकता है।
वह घर की बाहर रख कर आवाज लगता है, ओ रामू काका बाहर आओ मैं आया हूं आपकी लकड़िया ले आया हूं, रामू काका बाहर आते हैं, हां राजू बेटा यह लो अपने दो आने रामू लकड़ियों का गट्ठर वहीं रख देता है और अपने पैसे लेकर फिर जंगल की ओर चला जाता है और फिर कुछ लकड़िओ को इकट्ठा कर उसे बेचने के लिए निकलता है, इस बार वह एक औरत के घर जाता है।
राजू बाहर से ही आवाज लगता है, बहन ओ बहन आपकी लकड़िया ले आया हूं, झोपड़ी में से वह महिला बाहर आती है और अपनी लड़कियां ले जाती है वह घर में लड़कियां रखते हुए सोचती है राजू आज तो लकड़िया भी ज्यादा नहीं ले आया है और मेरे पास पैसे भी नहीं है जो मैं उसको दूं, अच्छा यही होगा कि मैं उसे कुछ चावल दे दूं, वह चावल लेकर बाहर आती है। यह लो राजू यह कुछ चावल है, मेरे पास पैसे नहीं है तो तुम पैसे के बदले यह चावल ले लो राजू बोलता है ठीक है बहन मुझे यह चावल ही दे दो मैं इसे पका कर अपनी मां को खिला दूंगा।
जादुई बर्तन Kahani in Hindi
राजू अपने घर आता है और वह चावल को पका कर अपनी मां को देता है उसकी मां और वह दोनों साथ में भोजन करते हैं उसकी मां भोजन करते हुए बोलती है बेटा मैं कैसी अभागिन हूं जो तुझे ठीक से पाल-पोस भी ना सकी, इतने में राजू बोलता है यह कैसी बातें कर रही हो मां मेरा यह सौभाग्य है कि मैं आपकी बूढ़े समय में आपकी सहारा बनू। थोड़ी देर बातचीत करने के बाद वह दोनों सो जाते हैं।
अगली सुबह राजू फिर से लकड़ियों को इकट्ठा करने जंगल में चल देता है वह लकड़ियों को बेचकर वापस आता है तो दिखता है उसके घर पर कुछ लोग इकट्ठा हुए हैं वह अपनी मां के पास जाता है उसकी मां दर्द से कराह रही थी, राजू अरे यह क्या हो गया तुझे मां राजू की मां बोलती है, कुछ नहीं बेटा आज कुछ तबीयत ठीक नहीं है पेट में बहुत दर्द भी है और सारे बदन टूट रहे हैं, राजू अपनी मां से कहता है मां तू सब्र रख मैं अभी वैद्य जी को लेकर आता हूं ऐसा कह कर राजू वैद्य को लाने निकल पड़ता है।
उस शाम मौसम कुछ ठीक नहीं था, बादल घिरे हुए थे और हल्की-हल्की वर्षा हो रही थी। राजू वैद्य जी के घर के पास पहुंचता है वह बाहर से ही दरवाजे को खटखटाता है, वैद्य जी, ओ वैद्य जी बाहर आई मेरी मां बीमार है, लेकिन कोई बाहर नहीं आता है तभी वहां से एक आदमी गुजर रहा था वह राजू से पूछता है क्या बात है भाई तुम यहां क्या कर रहे हो, राजू सारी बात उसे आदमी को बताता है वह आदमी बोलता है वेद जी का तो पिछले महीने ही स्वर्गवास हो गया। लेकिन तुम चिंता ना करो मैं तुम्हें एक साधु बाबा जी के पास ले चलता हूं।
वह दोनों साधु जी के पास जाते हैं राजू साधु जी को प्रणाम करता है इतने में साधु जी बोलते हैं चिंता मत करो राजू तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी। वह फिर बोलता है हां साधु बाबा जी आप तो ज्ञानी है आपको सब कुछ पता है, साधु बाबा राजू को एक जड़ी बूटी देते हैं राजू उसे जड़ी-बूटी को लेकर साधु बाबा को धन्यवाद करता है। वह जड़ी-बूटी को लेकर घर की ओर निकलता है।
Magic Pot Hindi Kahani
घर आकर वह जड़ी बूटी अपनी मां को पिलाता है उसकी मां तुरंत ठीक हो जाती हैं वह आश्चर्यचकित थी की वह इतनी जल्दी ठीक कैसे हो गई। राजू बोलता है मां यह दवाई मुझे एक साधु बाबा ने दी है वह चमत्कारी बाबा है। अब तुम ठीक हो गई हो तो मैं उन्हें कल धन्यवाद करने अवश्य जाऊंगा।
अगली सुबह साधु बाबा जी के पास जाता है और उनको प्रणाम करता है। साधु बाबा उसे आशीर्वाद देते हैं, लेकिन साधु बाबा दु:खी थे क्योंकि उनकी मौसम खराब होने की वजह से झोपड़ी टूट गई थी। वह राजू से कहते हैं बेटा मेरी झोपडी टूट गई है और इस जंगल में जंगली जानवर रहते हैं, जिससे मुझे डर है कि मैं उनका भोजन न बन जाऊं। राजू कहता है आप चिंता ना करें बाबा जी मैं आपकी मदद कर देता हूं मैं आपकी झोपड़ी बन सकता हूं मैं एक लकड़हारा हूं इतना कह कर वह जंगल की तरफ चला जाता है और जंगल में से कुछ लड़कियां और घास-फूस ले आता है और उनकी मदद से साधु जी की टूटी हुई झोपड़ी को बना देता है झोपड़ी अब पहले से सुंदर और काफी मजबूत थी।
यह देखकर साधु बहुत खुश होते हैं और राजू से कहते हैं बोलो बेटा तुमको क्या चाहिए राजू कहता है। कुछ नहीं बाबा जी बस मुझे कुछ ऐसा दे दीजिए ताकि मेरी मां को कभी भूखा पेट सोना ना पड़े। इतना कहते ही साधु बाबा जी राजू को एक जादुई बर्तन देते हैं और कहते हैं कि इससे तुम जो भी मांगोगे वह तुम्हें इस बर्तन से प्राप्त हो जाएगा। लेकिन एक बात का ख्याल रखना बेटा इस बर्तन से अपनी जरूरत की ही चीज मांगना अधिक लालच तुम्हें मुसीबत में डाल सकता है राजू कहता है, ठीक है बाबा जी मैं इस बात का अवश्य ख्याल रखूंगा। राजू बाबा जी का धन्यवाद कर आता है।
उसकी मां कहती है आ गया बेटा यह क्या लाया है, तेरे हाथ में यह कैसा बर्तन है राजू कहता है मां यह कोई मामूली बर्तन नहीं है मां यह एक जादुई बर्तन है, इसे मुझे उसे बाबा ने दिया है जो आपकी जड़ी बूटी दिए थे। इतना कह कर राजू उसे बर्तन से कहता है, हे जादुई बर्तन मेरी मां के लिए कुछ खाने को दो इतने में जादुई बर्तन में भोजन भर जाता है वह दोनों खुशी-खुशी भोजन करके सो जाते हैं, ऐसे ही उनके खुशी के दिन बिताते हैं।
Jadui Bartan Hindi Kahani
एक दिन उसकी पड़ोसन लीला दादी मां के घर आती है और कहती है, मां जी मेरे घर में अनाज का एक दाना नहीं है क्या आप मुझे कुछ अनाज दे सकती हैं मैं उसको पका कर अपने बच्चों को खिलाऊंगी ताकि मेरे बच्चे भूखे पेट ना सोए। राजू की मां को दया आ जाती है, वह घर में जाती हैं और उसे बर्तन को कहती हैं, हे जादुई बर्तन मुझे कुछ अनाज दो बर्तन में फिर से अनाज भर जाता है और अनाज को लाकर लीला को दे देती हैं, लीला वही बगल खड़ी सब कुछ देख लेती है वह हैरान थी कि इस बुढ़िया के पास जादुई बर्तन कहां से आ गया लीला के मन में लालच आ जाती है।
वह अगले दिन चुपके से राजू की मां के घर में जाकर उसे जादुई बर्तन को चुरा लेती है और लाकर उसे बर्तन से कहती है, हे जादुई बर्तन मुझे इतना सारा धन दो जितना कि इस विश्व में किसी ने ना कमाया हो इतना कहते ही उसके घर में सोने चांदी की बारिश होने लगी देखते ही देखते बारिश इतनी तेज होने लगी कि उसे लीला को चोट लगने लगी वह भागती हुई घर के बाहर जाती है और देखते ही देखते उसके घर में आग लग जाती है। लीला हैरान थी अरे यह क्या हो गया मेरा सारा धन और जादुई बर्तन जल के राख हो गया।
लीला बहुत पछताती हैं हे भगवान मैंने यह क्या कर दिया मेरी लालचों की वजह से यह सब हुआ है मुझे दादी मां से माफी मांगनी होगी वह उदास मन से राजू के घर जाती है वह दादी मां से माफी मांगती है दादी मां मैं आपका वह बर्तन चुराया था जिससे मुझे उसकी सजा मिली है। दादी मां उसे जादुई बर्तन के साथ लीला के पास आती हैं, लीला हैरान थी कि वह बर्तन दादी जी के पास कैसे आ गई। दादी मां बोलते हैं लीला यह बर्तन तो तुमने कभी चुराया ही नहीं जो बर्तन को तुम ले गई थी वह इस बर्तन की परछाई थी।
यह बर्तन शायद तुम्हारी परीक्षा ले रहा था और तुम्हें तुम्हारी ललचों का परिणाम मिला। लीला फिर उदास मन से अपने घर को लौट जाती है और फिर राजू और उसकी मां साधु बाबा को एक बार फिर से दोनों लोग धन्यवाद करते हैं और अपने जीवन को खुशी-खुशी जीने लगते हैं।
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